श्री राधे गोपाल

श्री राधे गोपाल भज मन श्री राधे गोपाल ।।
आजा आजा कृष्ण मुरारी,
नाव भँवर में पड़ी है हमारी ।
हमने शरण लई है तिहारी,
पर करो तत्काल भजमन ।। 1 ।।
द्रुपद सुता दुष्टों ने घेरी,
आये नाथ करी न देरी ।
लज रखी गोपाल भज मन श्री राधे ।। 2 ।।
वृन्दावन में रास रचैया,
सब गोपिन संग प्रेम बढ़ैया ।।
प्रेम रूप गोपाल भज मन श्री राधे ।। 3 ।।
चरी घाट पर चीर बढ़ैया,
दुःशाशन के मान घटैया ।
आगे भी गैया पीछे भी गैया,
बीच खड़े नन्दलाल भज मन ।। 4 ।।
बीच भँवर में नाव हमारी,
तुम बिन को ले खबर हमारी ।
पार करो गोपाल, भज मन श्री राधे ।। 5 ।।

मुरली काहे बजाई

मुरली काहे को बजाई साँवरिया
मेरी सूद बुध खो गई साँवरिया
सांवरिया बोलो सांवरिया ।। मुरली ।।

मैं तो चली थी माखन। बेचन - 2
नैना मेरे श्याम को देखन
भूल गई मैं तो गागरिया ।। मुरली ।।

मैं तो गई थी यमुना नहाने
कान्हा लग गयो बन्सी बजाने
सिर पे बांधी घाघरिया ।। मुरली ।।

मैं तो गई थी जमुना नहाने 
चूल्हे में लगी थी आग जलने
नैना ने चूल्हा बुझा दिया ।। मुरली ।।

गौ को चली थी चारा देने
उसको रोटी खिला दी मैंने
सास को चारा डाल दिया ।। मुरली ।।

भक्तों की पुकार

भक्तों की सुने पुकार, श्याम तुम्हे आना पड़ा ।
श्याम तुम्हे आना पड़ा, श्याम तुम्हे आना पड़ा ।

द्रोपदी की टेर सुनी दौड़े मुरारी ।
देंन न कीन्ही प्रभु लज्जा सावरी ।
दुष्ट दुशाशन गया हार ।
श्याम तुम्हे आना पड़ा ।।

गज की पुकर सुनी नंगे पैर दौड़े ।
तिल भर सूंड रही आकर बचाये ।
चक्र से ग्रह संहार ।
श्याम तुम्हें आना पड़ा ।।

भक्त प्रहलाद ने तुमको पुकारा ।
छुड़ा प्रहलाद हिरणकश्यप मारा ।
नृसिंह रूप लिया धारा।
श्याम तुम्हे आना पड़ा ।।

तेरा सहारा

अगर हमको तेरा सहारा न होता
भरी छल की दुनियां में गुजारा न होता
बड़े बेवफा है ये दुनिया वाले
ऊपर से उजले भीतर से काले
अगर ज्ञान न दे करके उबारा न हो
भरी छल की दुनियां में गुजारा न होता

लगाया जो तुमने प्यार का बगीचा
कभी अपनी सेवा से इसको न सीचा
कृष्णा दृष्टि दे जो संवारा न होता
भली छाल की दुनिया में गुजरा न होता

सुलझ ही न पाती ये मन की गिठायें
खत्म न होती वृथा कल्पनायें
तेरी ज्योति का जो नजारा न होता भरी छल की दुनियां में गुजरा न होता ।

कृष्ण कन्हैया

कृष्ण कन्हैया जो नन्द लाला।
जय जय हो तेरी हे मुरली वाला।।
नन्द यशोदा तेरा दर्शन पाता।
गोपी ग्वाला तुम बन्सी बजाता।।
राधा कृष्ण की भली प्रेम माला।
जय जय हो तेरी हे मुरली वाला ।।
वृन्दावन में तुम बन्सी बजाता ।
गोपियों की गैल में रास रचाता ।।
कान्हा प्यारा तुम यशोधा लाला ।
जय जय हो तेरी हे मुरली वाला ।।
मोर मुकुट तेरी वैजंती माला ।
जय हो तेरी राधा कृष्ण जय गोपाला ।।
बड़ा भाई है तेरा बालराम लाला ।
जय जय हो तेरी हे मुरली वाला ।।
गोपी ग्वालों का तुम माखन चुराता ।
अर्जुन को तुम गीता ज्ञान सुनाता ।।
तेरा गुणगान सारा संसार है गाता ।
जय जय हो तेरी हे मुरली वाला ।।

जय हो दुर्गा मैया

जय हो दुर्गा मैया, तेरी जय जयकार ।
जय हो नागणी मैया, तेरी जय जयकार ।
लाल चुनरी पहनी है तुमने
शेर की सवारी करती है मैया
करते हैं तेरी जय जय कार
जय हो दुर्गा मैया, तेरी जय जयकार ।
रत्न सिंहासन बैठी है मैया
द्धार पर तेरे आये है मैया
सब का कर दे बेड़ा पार
जय हो दुर्गा मैया, तेरी जय जयकार ।
ऋषियों की जननी तू दुर्गा भवानी
तू ही है तारण वाली तू ही है ज्ञानी
पूजा करता है संसार
जय हो दुर्गा मैया, तेरी जय जयकार ।
पापियों को मारा तूने भक्तों को तारा
भेंट चढ़ावे तुझको ये जग सारा
जपता तुझको ये संसार
जय हो दुर्गा मैया, तेरी जय जयकार ।

भोला न माने

भोले को कैसेे मैं मनाऊं रे
मेरा भोला न माने - 2
भोला न माने मेरा शंकर न माने -2
भोले को कैसे मैं मनाऊं रे
भोले को भाए न हाथी न घोड़ा -2
नन्दी कहाँ से लाऊँ रे
मेरा भोला न माने
भोले को कैसे मैं मनाऊं रे
भोले को भाये न लड्डु न पेड़े -2
भांग कहाँ से मैं लाउं रे
मेरा भोला न माने
भोले को कैसे मैं मनाऊं रे
भोले को भाए न ढोलक मंजीरा -2
डमरू कहाँ से मैं लाऊँ रे
मेरा भोला न माने
भोले को कैसे मैं मनाऊं रे
भोले को भाए न रेशम का चोला -2
बाघम्बर कहाँ से मैं लाऊं रे
मेरा भोला न माने
भोले को कैसे मैं मनाऊं रे
भोले को भाए न फूलों की माला -2
सर्प कहाँ से मैं लाऊं रे
मेंरा भोला न माने
भोले को कैसे मैं मनाऊं रे
मेरा भोला न माने  ..

श्री नर्मदा आरती

ॐ जय जगदा नन्दी
मैया जय आनंद कंदी ।
ब्रह्मा हरि हर शंकर सेवा
शिव हरी शंकर रुद्री पालन्ति ।।
ॐ जय जगदा 0 ।। 1 ।।
देवी नारद सारद तुम वरदायक
अभिनव पदचण्डी ।
सुर नर मुनि जन सेवत
सूए नर मुनि शारद पदवन्ति ।।
ॐ जय जगदा 0 ।। 2 ।।
देवी घुम्रक वाहन राजत
वीणा वादयंती ।
झुमकत झुमकत झुमकत
झननन झननन रमती राजन्ती ।
ॐ जय जगदा 0 ।। 3 ।।
देवी बाजत ताल मृदंगा
सुर मंडल रमती ।
तोड़ितान् तोड़ितान् तोड़ितान्
तुरड़ड़ तुरड़ड़  रमती सुरवंती ।।
ॐ जय जगदा0 ।। 4  ।।
देवी सकल भुवन पर आप वीराजत
निश दिन आनंदी ।
गायत गंगा शंकर सेवत रेवाशंकर
तुम भव मेटन्ती ।।
ॐ जय जगदा 0 ।। 5 ।।
मैया जी को कंचन थाल विराजत
अगर कपूर बत्ती ।
अमरकंठ में विराजत घाटन घाट
कोटि रतन ज्योति ।।
ॐ जय जगदा 0 ।। 6 ।।
मैया जी की आरती निशदिन पढ़ि गावें ।
भक्त शिवानन स्वामी जपत हरि
मनवांछित फल पावें ।
ॐ जय जगदा 0 ।। 7 ।।

आरती श्री गंगा जी की

ॐ जय जय जय गंगे श्री गंगे ।
त्रिलोकी के तारन कष्ट निवारण ।। टेक ।।
भक्त उबारन आई गंगे ।
आश्चर्य महिमा वेद सुनावे ।। जय 0 ।।
नर मुनि ज्ञानी ध्यान लगावे ।
जो तेरी शरणागति आवै।। जय 0 ।।
जीवन मुक्ति इच्छाफल पावै ।
पाप हरण भक्ति की दाता ।। जय 0 ।।
कटे दर्शन की त्राशा ।
लाल आरती जो नित गावे ।। जय 0 ।।
बसि बैकुंण्ठ अमर पद पावे ।

श्री लक्ष्मी नारायण आरती

जय लक्ष्मी विष्णो, जय लक्ष्मी नारायण ।
जय लक्ष्मी विष्णो, जय माधव जय श्रीपति।।
जय जय जय विष्णो, जय चम्पा संवर्णे ।
जय नारद कांते, जय मन्दस्मित शोभे जय ।।
अदभुत शांति, कमल वराभयं हस्ते शंखादिक ।
धरिन जय कमलालय, वासिनी गरुड़ासन चारिनि
सच्चिनमयकर चरने सच्चिन्मयमूर्ते ।।
तुम त्रिभुवन की माता, तुम सब की त्राता ।
तुम लोकत्रय जननी तुम सब की धाता।। जय ।।
तुम धन जन सुख संतति जय देने वाली ।
परमानन्द विधाता तुम हो वन माली ।। जय ।।
तुम हो सुमति घरों में तुम सबके स्वामी ।
चेतन और अचेतन के अन्तर्यामी ।। जय ।।
शरणागत हूँ मुझ पर कृपा करो माता ।
जय लक्ष्मी नारायण नव मंगल दाता ।। जय ।।

गीता सार

आप चिंता क्यों करते जो ।
मौत से व्यर्थ में क्यों डरते हो ।।
आत्मा तो चिर अमर है जान लो ।
तथ्य यह जीवन का सच्चा अर्थ है ।।
भूतकाल जो गया अच्छा गया ।
वर्तमान देख लो चलता भाया ।।
भविष्य की चिंता सताती है तुम्हें ।
है विधाता सारी रचना रच गया ।।
नयन गीले हैं तुम्हारा क्या गया ।
साथ क्या लाये जो खो दिया ।।
किस लिए पछता रहे हो तुम कहो ।
जो लिया तुमने यहीं से है लिया ।।
नंगे तन पैदा हुए थे खली हाथ ।
कर्म सदा रहता है मानव के साथ ।।
सम्पन्नता पर तुम मग्न तुम होते जो ।
एक दिन तुम भी चलोगे खाली हाथ ।।
धारणा मन में बसा लो बस यही ।
छोटा बड़ा, अपना पराया है नहीं ।।
देख लेना मन आँखों से जरा ।
भूमि धन परिवार संग जाता नहीं ।।
तन का क्या अभिमान करना बावरे ।
कब निकल जाये तेरा प्राण रे ।।
पाँच तत्व से बना यह तन तेरा ।
होगा निश्चय यह यहाँ निष्प्राण रे ।
स्वयं को भगवान के अर्पण करो ।।
शोक से, भय से रहोगे मुक्त तुम ।
सर्वस्व ईश्वर को समर्पण करते चलो ।।

गुरु की शरण

तब पावेंगे तब पावेंगे,
जब गुरु की शरण सिधावेंगे ।।
भरा समुन्दर गहरा पानी,
अध बिच नाव रही अटकानी ।
बिना मल्लाह के चतुर सुजानी,
कैसे तर कर जावेंगे ।। 1 ।।
पर्बत ऊपर शिखर मकाना,
प्रीतम पास खास चल जाना ।
कौन बतावे राह ढिकाना
जंगल में भटकावेंगे ।। 2 ।।
नोंलाख तारा उगिया भारी,
सूरज चाँद करे उजियारी ।
ज्ञान बिना सब रेन अंधियारी,
किस विधि दर्शन पावेंगे ।। 3 ।।
गुरु भवसागर पर लगावे ।
मन के सारे भ्रम मिटावे,
ब्रहमानन्द समावोगे ।। 4 ।।

इन्सान बनाया

न हिन्दू बनाया न मुसलमान बनाया ।
भगवान ने बन्दा सिर्फ इंडेन बनाया ।।
लेते ही जन्म पड़ गए जाल मजहब के ।
कानों में गूँजने लगे सुरताल मजहब के ।।
हिन्दू कोई मुसलमान कोई सिख कोई ईसाई ।
आने लगे बन्दे तुझे ख्याल मजहब के ।।
इन ख्यालों ने इंसान को शैतान बनाया ।। न हिन्दू
सबका लहू है एक जिस्म सबका एक है ।
हिन्दू मुसलमान धर्म सबका एक है ।।
रुइ की दीवार है तू नोद दे इंसान ।
उस एक को पहचान कर्म सबका एक है ।।
क्यों स्वर्ग सी धरती की श्मशान बनाया ।। न हिन्दू
क्यों फिकरों में पड़ कर जन्म खोये रहा है ।
एक पुण्य करने जाए सौ पाप होये रहा है ।।
मनुष्य जन्म मिला है जरा सोच समझ ले ।
काँटों के बीज क्यों बोए रहा है ।।
क्यों नर्क में जाने का सामान बनाया ।। न हिंन्दु
कुरान की आयात से यह आवाज है आती ।
गीता भी हमें रोज यही गान सुनाती ।।
क्या ग्रन्थ क्या एंजिला वो क्या भेद है कहते ।
सब एक है बन्दे न कोई जाती किसी की ।।
नादान हमीं ने ख्याले मजहब बनाया ।। न हिन्दू

मुरली वाले ने

जब प्रेम का डंका बजा दिया,
मन मोहन मुरली वाले ने।।
मृतक में जीवन डाल दिया,
मन मोहन मुरली वाले ने ।
अज्ञान रात अंधियारी थी,
होना मुश्किल रखवारी थी ।
सोते से आकर जग दिया,
मन मोहन मुरली वाले ने ।।
दुशाशन - शकुनी - दुर्योधन,
करना चाहते द्रौपदी नग्न ।
बस वासन उसी डैम बढ़ा दिया,
मन मोहन मुरली वाले ने ।।
पलटनें ख़ड़ी थी लड़ने को,
कट कट कर राण मे मारने को ।
गीता का बिगुल बज दिया,
मन मोहन मुरली वाले ने ।।
गीता उत्तम पुस्तक सुन्दर,
जिसमे भर दिया प्रेम मंतर ।
अर्जुन को निर्भय बना दिया,
मन मोहन मुरली वाले ने ।।
गउएँ  दुःख से है चिल्लाती,
सुन सुन कर है फटती छाती ।
याद याद ही संकेत किया,
मन मोहन मुरली वाले ने ।।
गोपाल कृष्ण फिर आये है,
बंधिकों से गाये छुड़ाने को ।
जिसने सहस कंस को बध किया,
मन मोहन मुरली वाले ने ।।

अकेला जायेगा

छोड़ कर सारे वतन को,
आप अकेला जाएगा ।।
बाँदा कहता काया मेरी,
माया का अभिमान किया ।
चाँद सा तेरा बदन यह,
खाक में मिल जायेगा ।।
बालपन लड़कपन में खेला,
जवानी में सोता रहा ।
बुढा हुआ मारने लगा,
फिर खाट में गिर जायेगा ।
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी,
जोड़ कर धर जायेगा ।
जब निकलेंगे प्राण तेरे,
सब यहाँ का यहाँ रह जायेगा ।।
करना है सो कर ले बन्दे,
फिर पाछे पछतायेगा ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
करनी का फल पायेगा ।।

ये आंसू

जिगर के टुकड़े है यह हमारे,
जो आंसू बन कर निकल रहे है ।
विरह की अग्नि में जल रहा हूँ,
यों आसुओं से बुझा रहे है ।। टेक ।।
उन्होंने मेरा दिल हर लिया है,
यो ही ये आंसू ढलक रहे है ।
दर्शन दिखा दो हे नाथ अब तो,
हम आप ही को मना रहे है ।। 1 ।।
मोर मुकुट की छवि जय न्यारी,
पीताम्बरी को सजा रहे है ।
तुम्हारी लीला अपार, भगवान,
जो आप हमको दिखा रहे है ।। 2 ।।
भक्तों के हित्त लिए है स्वामी ,
ये आप मुरली बजा रहे है ।
पड़ा है दर पर ये दास व्याकुल,
भगवान क्यों हमको सता रहे है ।। 3 ।।

प्रभुजी की शरण

प्रभुजी शरण तिहारो आयो ।। टेक ।।
जो कोई शरण तिहारी नहीं,
भरम भरम दुःख पायो ।। प्रभुजी
ओरन के मन देवी देवा,
मेरे मन तू भाया ।
जब सों सूरत संभारि जग में,
और अन शीश झुकायो । । प्रभुजी
नरपति सुरपतिआस तिहरी,
इस सुनि हरि मैं धायो।
तीर्थ व्रत सकल फल सब त्यागे,
चरण कमल चिट लायो ।। प्रभुजी
नारद मुनि अरु शिव ब्रह्मादिक,
तेरा ही ध्यान लगायो ।
आदि अनादि युगादि तेरा ही यश,
वेद पुरानन गायो ।। प्रभुजी
अब तुम बाँह गहो हरी मेरा,
तेरौ दास कहायो ।।
चरणदास कहै करता तू ही,
गुरु सुकदेव बताओ ।। प्रभुजी




मनुष्य जन्म

फेर न मिलेगा बन्दे,
मनुष्य जन्म फेर न मिले ।। टेक ।।
आया सी बन्दया नाम जपण नूँ,
लगी बैठा कूड़े धंदे ।। मनुष्य जन्म
जोश - जवानी विच फिरदा गवाया,
आगे लगेंगे डंडे ।। मनुष्य जन्म
पिछला रस्ता साफ़ न कित्ता,
आगे बिछा लिये कंडे ।। मनुष्य जन्म ।।
भक्त कमाली कबीर जी दी पुत्री,
आगे यमाँ वाले फन्दे ।। मनुष्य जन्म ।।

गुरु के वचन

गुरु के वचन सदा अविनाशि,
गुरु के वचन कटै जम फांसी ।।
गुरु के वचन जी के संग,
गुरु के वचन रचे राम के रंग ।
जो गुरु दिया सो मन के काम,
संत का दिया संत कर मान ।।
गुरु का वचन अटल अच्छेद,
गुरु के वचन कटे भ्रम भेद ।
गुरु का वचन कतहुँ न जाय,
गुरु का वचन हरी के गुण  गाय ।।
गुरु के वचन जी के साथ,
गुरु के वचन अनाथ के नाथ ।
गुरु के वचन नरक न पावे,
गुड के वचन रसना अमृत देवें ।।
गुरु के वचन प्रकट संसार,
गुरु के वचन न आवे हार ।
जिस जन होय आप कृपाल,
नानक सतगुरु सदा दयाल ।।

गुरु समान नहीं दाता

जग में गुरु समान नहीं कोई दाता ।। टेक
वस्तु अगोचर देइ मेरे सत् गुरु,
भली बताई बाता ।
काम और क्रोध कैद कर राखे,
लोभ को लीना न था ।। 1 ।।
काल करे सो हाल ही कर ले,
फेर न मिले यह साथा ।
चौरासी में जाये गिरोगे,
भुगतो दिन और राता ।। 2 ।।
शब्द पुकार पुकार कहत है,
कर ले सन्तन साथा ।
सुमिरण बन्दगी कर साहब की,
काल नवावे माथा ।। 3 ।।
कहे कबीर सुनो धर्म दासा,
मानो बचन हमारा ।
पारदा खोल मिलो सत् गुरु से,
उत्तरो भाव जल पारा ।। 4 ।।

जीवन एक वृक्ष

जीवन एक बृक्ष है फानी ।
पत्ते बचपन साख जवानी ।
पतझड़ ऋत्तु है खुशक बुढ़ापा ।
इसके बाद है खत्म कहानी ।। टेक ।।
आयु जड़ को काट रहे ।
दिन रत के दो कुल्हाड़े ।
तेरे देखत काल कुठार ने ।
कितने बाग उजाड़े ।।
अब भी माना कहा अभिमानी ।
मन क्यों करता है अभिमानी ।
तेरे काम तो है चोरों के ।
पढता है संतों की बानी ।। 1 ।।
वृक्षों से कुछ सिख नसीहत ।
गर है जीवन पाया ।
पत्तों की पत रख निर्धन की ।
साखा से कर छाया ।
फूलों से महक जिन्दगानी ।
है फासले फुल जवानी ।
जड़ से जड़ धर्म की पुख्ता ।
रह जायेगी याद निशानी ।। 2 ।।
समय है कम और वह भी बिखरा ।
मंजिल दूर है तेरी ।
सुखिया की कहीं चकाचौन्ध है ।
दुःख की कहीं अंधेरी ।
इसमें भटक गया अभिमानी ।
अब भी मान कहा अज्ञानी ।
जितनी बची है उसे बचा ले ।
वरना यह भी हाथ न आनी ।। 3 ।।
सौ सालों की उमर भी हो तो ।
आधी खा गई रातें ।
कुछ बचपन कुछ खाये बुढ़ापा ।
बाकी थोड़ी बातें ।।
नत्था सिंह सार न जानी ।
जीवन एक बुलबुला पानी ।
आखिर मिल गई हवा हवा में ।
रह गई खाक जो तूने छानी ।। 4 ।।

सोच समझ

चादर हो गई बहुत पूरानी,
अब कर सोच समझ अभिमानी ।। टेक
अजब जुलाहे चादर बानी,
सूत करम की तानी ।
सुरति निरति को भरना दीना,
तब सब के मनमानी ।।
मैले दाग परे पापन के,
विषयान् में लपटानी ।।
ज्ञान को साबुन लाये न धौयो,
सत संगत के पानी ।।
भाई खराब आब गई सारी,
लोभ मोह में सानी ।।
ऐसे ही ओढ़त उम्र गवाई,
भली बुरी नहीं जानी ।।
शंका मरण जानू जिय अपने,
है यह बस्तु बिरानी ।
कहे कबीर याहि राखु जानत से,
हाथ नहीं फिर आनी ।।

मालूम न था

चाँद बदल में छिपा था मुझे मालूम न था ।
भूल कर इश्क किया था मुझे मालूम न था ।।
मैंने सवः था की जगत में रहूँगा कायम ।
कब्र मेरा बतन था मुझे मालूम न था ।।
मेरे दिल के परदे में खुदा रहता था ।
इक नुक्ते में खुद से जुदा था मुझे मालूम न था ।।
मैन सोचा था कि दुनिया में बनूँगा दूल्हा ।
खास पोशाक कफ़न था मुझे मालूम न था ।।
जबकि पूछेगा खुदा मुझसे किये कितने गुनाह ।
ख्वावे गफ़लत में था मुझे मालुम न था ।।

मिट्टी में मिल जाना

माटी ओढ़न माटी पहरन,
माटी का सिरहाना ।
अब तू क्या तन मांजे बन्दे,
आखिर माटी में मिल जाना ।
माटी का कलबूत बनाया,
जिससें भंवर समाना ।। अब तू क्या
माटी कहे कुम्हार से,
क्या रुँधत है मोहि ।
इक दिन ऐसा आएगा,
मैं रूँधूँगी तोहे ।। अब तू क्या
चुन चुन कंकर महल बनाया,
बाँदा कहे घर मेरा,
न घर तेरा न घर मेरा,
चिड़िया रेन बसेरा ।। अब तू क्या
फट चोला भया पुराना,
कब लग सीवे दर्जी ।
दिल का महरम कोई न मिलया,
जो मिल्या अलगर्जि ।। अब तू क्या
नानक चेला भया पुराना,
संत जो मिलया दार्जि ।
दिल के महरम संत जन मलगे,
उपकारण के गरजी ।। अब तू क्या

आरती श्री गीता जी की

जय गीता माता श्री जय गीता माता ।
सुख करनी दुःख हरनी तुमको जग गता ।
अज्ञान मोह ममता को छिन् में नाश करे ।
सत्य ज्ञान का मन में आप प्रकाश करे ।
शरण माँ की जो आवे माँ की मती ग्रहण करे ।
पाप ताप मिट जावें निर्भर भाव सिंधु तारे ।
रन क्षेत्र में अर्जुन जब शोकाधीर हुआ,
कर्तव्य कर्म ताज बैठा बहुत मलिन हुआ ।
तब श्री कृष्ण के मुख से तुमने अवतार लिया ।
तत्व बात समझाकर उसका उद्धार किया ।
शारीर जन्मते मरते आत्मा अनिवाशी ।
शारीर को दुःख व्यापते आत्मा सुख राशि ।
अतः शारीर की ममता मन से त्याग करो ।
आत्मब्रह्म को चिन्हों उससे अनुराग करो ।
निष्काम कर्म नित्य करके जग का उपकार करो
फल वांछा को त्यागो  सद्व्यवहार करो ।
निष्काम जग में रह कर हरि से अनुराग करो ।
यह उपदेश तेरे जो नर मन में लाये,
भगवान भवसागर से वह क्यों न तर जावे ।

सत्संग की गंगा

अगर सतगुरु जी हमें न जागते,
तो सत्संग की गंगा में हम कैसे नहाते ।
चंचल चिकनाई से हम है कुचैले,
तो विषयों की स्याहि से हम अति मैले ।।
जो उपदेशा का साबुन हम न लगते,
तो शांति सफाई को हम कैसे पाते ।
भक्ति के लोटे में बहती है गंगा,
तो जल बिंदु चन्दन की बिंदी लगाते ।।
मोक्ष की बारी पर हमको बिठा कर,
तो राम नाम की माला जपाते ।
ज्ञान का सुरमा नैनों में पाके,
तो ह्रदय के पट आप ही खुल जाते ।।
भक्ति पदार्थ को जो नित्य पावे,
तो जन्म मरण के भय मिट जाते ।।
सागर का जल कैसे गागर समावे,
तो सतगुरु का ज्ञान कैसे जसवंती पावे ।।
दुइ के परदे को दूर हटा के,
तो हरी सतगुरु आप ही मिल जावे ।
गरल का पान किया मीरा बाई ने,
वो हरि अमृत करके पिलावे ।।

बुलाया करूँ

तुम आओ न आओ यहाँ तुमको,
निशिवासर ही में बुलाया करूँ ।
तेरे नाम की माला सदा है सखे,
मन की मणियों पर मै फिराया करूँ ।।
जिस पथ में पाँव धरो तुम सखे,
उस पथ पर मैं पलकें बिछाया करूँ ।।
भर लोचन की गगरी नित ही,
पद पंकज पर ढलकाय करूँ ।।
तुम आओ कभी भूल से यहाँ,
दृग नीर दे पाँव पखारा करूँ ।।
मन मंदिर स्वच्छ करा है सखे,
उस आसान पै पधराया करूँ ।।
मृदु मंजुल भाव की माला बना,
तेरी पूजा का साज सजाया करूँ ।।
अब और नहीं कुछ पास मेरे,
नित प्रेम के पुष्प चढ़ाया करूँ ।।
तुम जान अयोग्य बिसतो मुझे,
पर मैं न तुम्हे बिसराया करूँ  ।।
गुण गान करूँ नित ध्यान करूँ,
तुम मन करो मैं मनाया करूँ ।।
तेरे भक्तों की भक्ति करूँ सदा,
तेरे चाहने वालों को चाह करूँ ।।

मोहन की शोभा

देख रूप मोहन की शोभा,
निज नैनन को बड़ो भाग रे ।
अदभुत सुन्दर भलक बदन पै,
बिखसर रही अलकें घुंगरारि ।।
मुख भोरो नैन अलसाने,
कोटि मदन कीजो बलिहारी ।
मीन चंचलता तजि खंजन,
राजत ललितरूप फुलवारी ।।
लेत जम्भाई, मात दे चुटकी,
छया रही तन रैन खुमारी ।
मनमोहन की या छवि ऊपर,
मोहे जग के सकल नर नारी ।।

जय गुरु देव

जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी ।
जय जय मोह विनाशक, भाव बंधन हारी ।। जय
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव गुरु मूरत धारी ।
वेद पुराण बखानत, गुरु महिमा भारी ।। जय 0
जप तप तीरथ संयम दान विविध दीन्हे ।
गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि यतन किन्हें ।। जय
माया मोह नदी जल जीव बहे सारे ।
नाम जहाज बिठाकर गुरु पल में तारे ।। जय 0
काम, क्रोध, मद, मत्सर चिर बड़े भारे ।
ज्ञान खड़ग दे कर में, गुरु सब सहारे ।। जय ।।
नाना पंथ जगत में निज निज गुण गावें ।
सबका सर बताकत, गुरु मार्ग लावे ।। जय 0
गुरु चरणामृत निर्मल, सब पात कहारी ।
बच्चन सुनत ताम नाशे, सब सयंम टारी ।। जय
तन मन धन सब अर्पण गुरु चरणन कीजे ।
ब्रह्मानंद परमपद, मोक्ष गति लीजे ।। जय 0
चार वेद छः शास्त्र सब में दर्शाया ।
शेष, महेश रटत है, पार नहीं पाया ।। जय 0
पांच चोर के मारन के कारण नामका बाण दिया
प्रेम भक्ति से साधा, भव जल पर किया ।। जय
सतयुग, त्रेता, द्वापर नाना रूप लिया ।
कलिकाल भक्तन हित, हंस अवतार लिया ।।जय
श्री सदगुरुदेव की आरती प्रेम सहित गावे ।
भाव सागर से तर कर परम गति पावे ।। जय 0







गुरु आरती

जय जय जय गुरुदेव तुम्हारी,
आरती करउँ मोद मन भारी ।। जय 0
    ब्रह्मा, विष्णु और महादेवा,
निश दिन करे हमारी देवा,
तुम सम नहीं कोई हितकारी ।। जय 0
    शेष, गणेश, व्यास, जनकदिक,
नारद, शारद, शुक, सनकादिक,
सब ने गुरु आज्ञा सिर धरी ।। जय 0
    सुर, नर, मुनि, जन आदि घनेरे,
गुरु पूजन करे साँझ सबेरे,
दोउ कर जोड़े खड़े अगारी ।। जय 0
    हरी सी गुरु महिमा अधिकाई,
जानी जिन किन्हीं सेेवकाई,
राम लखन श्री कृष्ण मुरारी ।। जय 0
    श्री गुरु चरण शरण जो आवे,
गुरु कृपा से परमागित पावे,
माया मोह बंध सब टारी ।। जय 0
    गुरु प्रताप पावे प्रभुताई,
रंकहु ले सिर छत्र धराई,
बहु विधि से पूजें नर नारी ।। जय 0
    गुरु बिन आत्म ज्ञान न होवे,
मुर्ख जन्म भूल न खोवे,
बार बार कहे वेड पुकारी ।। जय 0
    तन, मन दे गुरु सेवा कीजे,
मानुष जन्म सफल कर लीजे,
हंस नाम गुण गावे पुजारी ।। जय 0
    अड़सठ दिवा जोये के, चौदह चन्दा माहीं ।
    ते घर किसका चांदना, जे घर सतगुरु नाहिं ।।