शिवजी की स्तुति

हे दीन बंधु दयाल शंकर, जानि जन अपनाइये ।
भव धार पार उतारो को, निज समीप बसाइये ।।
जाने अनजाने पाप मेरे, तिनहिं आप नासाइये ।
कर जोरि जोरि निहोरि माँगौ, देखि दर्श दिखाइये ।।
देवी सहाय सुनाय शिव को, प्रेम सहित जो गावहिं ।
जग योनि से छूटी जाये ते नर, सदा अत्ति सुख पावहिं ।।
दोहा बार - बार बिनती करौ, धारों चरण पर माथ ।
निजपद भक्ति भाव मोहिं, देव उमापति नाथ ।।
शिव सामान दात्ता नहीं, बिपत्ति बिदारन हार ।
लज्जा मेरी राखियो, बरधा के असवार ।।