जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी ।
जय जय मोह विनाशक, भाव बंधन हारी ।। जय
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव गुरु मूरत धारी ।
वेद पुराण बखानत, गुरु महिमा भारी ।। जय 0
जप तप तीरथ संयम दान विविध दीन्हे ।
गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि यतन किन्हें ।। जय
माया मोह नदी जल जीव बहे सारे ।
नाम जहाज बिठाकर गुरु पल में तारे ।। जय 0
काम, क्रोध, मद, मत्सर चिर बड़े भारे ।
ज्ञान खड़ग दे कर में, गुरु सब सहारे ।। जय ।।
नाना पंथ जगत में निज निज गुण गावें ।
सबका सर बताकत, गुरु मार्ग लावे ।। जय 0
गुरु चरणामृत निर्मल, सब पात कहारी ।
बच्चन सुनत ताम नाशे, सब सयंम टारी ।। जय
तन मन धन सब अर्पण गुरु चरणन कीजे ।
ब्रह्मानंद परमपद, मोक्ष गति लीजे ।। जय 0
चार वेद छः शास्त्र सब में दर्शाया ।
शेष, महेश रटत है, पार नहीं पाया ।। जय 0
पांच चोर के मारन के कारण नामका बाण दिया
प्रेम भक्ति से साधा, भव जल पर किया ।। जय
सतयुग, त्रेता, द्वापर नाना रूप लिया ।
कलिकाल भक्तन हित, हंस अवतार लिया ।।जय
श्री सदगुरुदेव की आरती प्रेम सहित गावे ।
भाव सागर से तर कर परम गति पावे ।। जय 0