गुरु आरती

जय जय जय गुरुदेव तुम्हारी,
आरती करउँ मोद मन भारी ।। जय 0
    ब्रह्मा, विष्णु और महादेवा,
निश दिन करे हमारी देवा,
तुम सम नहीं कोई हितकारी ।। जय 0
    शेष, गणेश, व्यास, जनकदिक,
नारद, शारद, शुक, सनकादिक,
सब ने गुरु आज्ञा सिर धरी ।। जय 0
    सुर, नर, मुनि, जन आदि घनेरे,
गुरु पूजन करे साँझ सबेरे,
दोउ कर जोड़े खड़े अगारी ।। जय 0
    हरी सी गुरु महिमा अधिकाई,
जानी जिन किन्हीं सेेवकाई,
राम लखन श्री कृष्ण मुरारी ।। जय 0
    श्री गुरु चरण शरण जो आवे,
गुरु कृपा से परमागित पावे,
माया मोह बंध सब टारी ।। जय 0
    गुरु प्रताप पावे प्रभुताई,
रंकहु ले सिर छत्र धराई,
बहु विधि से पूजें नर नारी ।। जय 0
    गुरु बिन आत्म ज्ञान न होवे,
मुर्ख जन्म भूल न खोवे,
बार बार कहे वेड पुकारी ।। जय 0
    तन, मन दे गुरु सेवा कीजे,
मानुष जन्म सफल कर लीजे,
हंस नाम गुण गावे पुजारी ।। जय 0
    अड़सठ दिवा जोये के, चौदह चन्दा माहीं ।
    ते घर किसका चांदना, जे घर सतगुरु नाहिं ।।