अगर सतगुरु जी हमें न जागते,
तो सत्संग की गंगा में हम कैसे नहाते ।
चंचल चिकनाई से हम है कुचैले,
तो विषयों की स्याहि से हम अति मैले ।।
जो उपदेशा का साबुन हम न लगते,
तो शांति सफाई को हम कैसे पाते ।
भक्ति के लोटे में बहती है गंगा,
तो जल बिंदु चन्दन की बिंदी लगाते ।।
मोक्ष की बारी पर हमको बिठा कर,
तो राम नाम की माला जपाते ।
ज्ञान का सुरमा नैनों में पाके,
तो ह्रदय के पट आप ही खुल जाते ।।
भक्ति पदार्थ को जो नित्य पावे,
तो जन्म मरण के भय मिट जाते ।।
सागर का जल कैसे गागर समावे,
तो सतगुरु का ज्ञान कैसे जसवंती पावे ।।
दुइ के परदे को दूर हटा के,
तो हरी सतगुरु आप ही मिल जावे ।
गरल का पान किया मीरा बाई ने,
वो हरि अमृत करके पिलावे ।।