पूर्णमाशी व्रत कथा


पूर्णमाशी का व्रत हर महीने में पूर्णमाशी को किया जाता है । तथा पूर्ण चंद्रमा का और सूर्य और श्री सत्यनारायण व्रत भी इसी दिन किया जाता है । यों तो किसी भी पूर्णमाशी से व्रत शुरू कर सकते है लेकिन अगर इस व्रत को मार्गशीष से शुरू किया जाये तो बहुत ही शुभ फल मिलता है । इस व्रत में वेद पुराण, देव पूजन, तीर्थ स्नान और दान करने से शुभ फल प्राप्त होता है । संतान प्राप्ति और सौभाग्य उन्नति के लिए स्त्रियो को 32 पूर्णमाशी व्रत करने चाहिए । तत् पश्चात उद्यापन करना चहिये । पूर्णमाशी का व्रत अचल सौभाग्य देने वाला एवं भगवान शंकर के प्रति मनुष्य मात्र की भक्ति को बढ़ाने वाला है । जो भी स्त्रियां पूर्णमाशी का व्रत करती है वह जन्म जन्मान्तर विधवा होने का दुख नहीं भोगती । यह व्रत सन्तान प्राप्ति व पुत्र प्राप्ति हेतु लाभकारी है । सम्पूर्ण मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है । भगवान शिवजी की पूर्ण कृपा बनी रहती है । और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है ।
पूजन के लिए आवश्यक सामग्री
1 धुप व अगरबत्ती
2 घी
3 दीपक
4 फूल
5 गंगाजल
6 रोली
7 मोली
8 यज्ञोपवीत
9 दूध
10 दहीं
11 शहद
12 चावल
13 जौं
14 तिल
15 शक्कर
16 सफेद वस्त्र
17 सुपारी
18 लाल वस्त्र
19 रुई
20 बिल पत्र
21 आम के पत्ते
22 फल
23 आटा
24 स्वर्ण प्रतिमा
25 नारियल
26 चन्दन
27 समिधा
28 दुब
29 रेट व ईंटें
30 कुशा
31 आसन
32 कलश
33 आचार्य के लिए धोती कुर्ता
पूजन विधान
जिसे व्रत करना हो उसे सुबह 4 बजे उठ कर स्नान इत्यादि करके पूजन करना चाहिए उसके बाद नित्य कार्य करने चाहिए । फिर आटे से चौका बना कर केले का बनाकर शिव पार्वती जी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर स्थापित करें । नवीन वस्त्र पहन कर आसान पर पूर्व दिशा की और मुँह कर के बैठें । धुप दीपक व अगरबत्ती समर्पित करें । हाथ में जल ले कर संकल्प करें और गणेश जी का आवाहन व पूजन करें । वरुण आदि देवताओं का आवाहन करते हुए धुप दिखाएँ और घंटी बजाएं व कलश पूजन करें । चंदनादि समर्पित करें । दीपक को नमस्कार करें । फूल रोली मोली के द्वारा घंटी को नमस्कार करें । ॐ अपवित्रः पपित्रो वा सर्ववस्था गतोय्पीवा । यः स्मेरत पुण्डरीकाक्ष सवाह्माभ्यन्तरः शुचि । इस मन्त्र द्वारा पूजा सामग्री और जल छिड़काएं । इंद्र आदि 8 लोकपालों का आवाहन करें व पुजन करें । मंदारमाल कुलितलाकाये कपलमन्कित शेखराय । दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवाय च नमः शिवाय को आवाहन करें और ध्यान ने रखें । गंगा सरस्वती रेव पयोष्णी नर्मदा जलै । स्नापितासि मया देवी तेन शांति क्रिरूष्व में मन्त्र से शिव जी को स्नान करवाएं । नमः दैव्यै महादेवयै शिवाय सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः पर्णता स्मताम् , मन्त्र से पारवती जी को स्नान कराएं साथ में पूजन करें और चन्दन ,पुष्प ,घी ,धुप व दीप दिखाएँ । हाथों के लिए उबटन समर्पण करें फिर सुपारी अर्पण करें दक्षिणा भेंट करे और नमस्कार करे । सुन्दर वस्त्र करके यज्ञपवीत धारण करें । श्रीखंड चन्दन दिव्य गंधाढ्यं सुमनोहरम् विलेपन सुर श्रेष्ठ चंदनं प्रतिग्रह्मताम् इस मंत से चन्दन अर्पित करें , हल्दी चढ़ाएं व कुम्कुम आदि अर्पण करें । मालादि समर्पित करें । माल्यादीनि सुगन्धिनी माल्यादीनि हे प्रभो । मायाय्हस्तानि पूजार्थ पुष्पाणि प्रतिगृहताम् इन 2 मंत्रो से सुगन्धित पुष्प अर्पित करें व धुप दीप दिखाएँ और नवैध चढ़ाएं । फिर मध्य में जल छोड़ें । चन्दन अर्पित करें । इदं फलं माया देवि सथापितं परतस्तव तेनमे सुफ्लावापितर्भवेज्जन्मनि जन्मनि इस मन्त्र से नारियल तथा फल अर्पित करें । सुपारी चढ़ाएं और दक्षिणा चढ़ायें । यानि कानी च पापनि जन्मान्तकृतनि वः तानि 2 विनश्यान्ति प्रदक्षिणा पदे 2 इससे परिक्रमा करें और नमस्कार करके हाथ जोड़ कर पूजन सम्पूर्ण करें ।
।। इति श्री पूर्णमाशी व्रत पूजन विधि संपूर्णम् ।।
पूर्णमाशी व्रत उद्यापन विधि
पूर्णमाशी व्रत माघ अथवा बैशाख मॉस की पूर्णमाशी को आरम्भ करना चाहिए और भादो और पौष छोड़ देना चाहिए । प्रत्येक पूर्णमाशी को शिवजी व पार्वती जी की विधिवत पूजा करनी चाहिए । हर महीने 1-1 दीपक ज्वलित करना चाहिए व हर महीने 1 दीपक बढ़ाना चाहिए । जब 32 दीपक पूरे होने पर अर्थात पूर्णमाशी पूरी होने पर पूर्णमाशी को उद्यापन करना चाहिए संभव हो तो ज्येष्ठ पूर्णमाशी हो तो अत्ति उत्तम । चतुर्थी के दिन निराहार रहकर उपवस करें । राय को एक मण्डप बना कर उसके बीच जल भरकर रखें और कपडे से ढक दें । स्वर्ण प्रतिमा स्थापित कर दें तथा पूजन करें और धुप दीप दिखाएं , फल फूल अर्पित करें । रात्रि में किर्तन या जागरण करें । अगले दिन प्रातः कल स्नान ध्यान करके दीपक व हवन अग्नि स्थापित करके तिल, जों, चावल, घी, चंदनादि सुगन्धित पुष्प द्रव्यों के संकल्प से ॐ नमः शिवाय मन्त्र से108 बार आहुति दें फिर ॐ उमायै नमः मन्त्र से भी 108 बार आहुति दें । इस प्रकार हवं करके 10 दिक्पालों को नारियल की आहुति दें और आरती करें । इसके बाद ब्राह्मणों को उनकी ब्रह्मणियों सहित भोजन करवाएं उसके बाद प्रसाद बांटें ओर ग्रहण करें । अन्त में कहें हे देवि मैंने जो मन्त्रहीन, क्रियाहीन पूजा की है यह सब आपकी कृपा मात्र से पूर्ण हुआ । हे देवादि देव आपको नामस्कार हो ।