माटी ओढ़न माटी पहरन,
माटी का सिरहाना ।
अब तू क्या तन मांजे बन्दे,
आखिर माटी में मिल जाना ।
माटी का कलबूत बनाया,
जिससें भंवर समाना ।। अब तू क्या
माटी कहे कुम्हार से,
क्या रुँधत है मोहि ।
इक दिन ऐसा आएगा,
मैं रूँधूँगी तोहे ।। अब तू क्या
चुन चुन कंकर महल बनाया,
बाँदा कहे घर मेरा,
न घर तेरा न घर मेरा,
चिड़िया रेन बसेरा ।। अब तू क्या
फट चोला भया पुराना,
कब लग सीवे दर्जी ।
दिल का महरम कोई न मिलया,
जो मिल्या अलगर्जि ।। अब तू क्या
नानक चेला भया पुराना,
संत जो मिलया दार्जि ।
दिल के महरम संत जन मलगे,
उपकारण के गरजी ।। अब तू क्या