आरती श्री गीता जी की

जय गीता माता श्री जय गीता माता ।
सुख करनी दुःख हरनी तुमको जग गता ।
अज्ञान मोह ममता को छिन् में नाश करे ।
सत्य ज्ञान का मन में आप प्रकाश करे ।
शरण माँ की जो आवे माँ की मती ग्रहण करे ।
पाप ताप मिट जावें निर्भर भाव सिंधु तारे ।
रन क्षेत्र में अर्जुन जब शोकाधीर हुआ,
कर्तव्य कर्म ताज बैठा बहुत मलिन हुआ ।
तब श्री कृष्ण के मुख से तुमने अवतार लिया ।
तत्व बात समझाकर उसका उद्धार किया ।
शारीर जन्मते मरते आत्मा अनिवाशी ।
शारीर को दुःख व्यापते आत्मा सुख राशि ।
अतः शारीर की ममता मन से त्याग करो ।
आत्मब्रह्म को चिन्हों उससे अनुराग करो ।
निष्काम कर्म नित्य करके जग का उपकार करो
फल वांछा को त्यागो  सद्व्यवहार करो ।
निष्काम जग में रह कर हरि से अनुराग करो ।
यह उपदेश तेरे जो नर मन में लाये,
भगवान भवसागर से वह क्यों न तर जावे ।