जीवन एक वृक्ष

जीवन एक बृक्ष है फानी ।
पत्ते बचपन साख जवानी ।
पतझड़ ऋत्तु है खुशक बुढ़ापा ।
इसके बाद है खत्म कहानी ।। टेक ।।
आयु जड़ को काट रहे ।
दिन रत के दो कुल्हाड़े ।
तेरे देखत काल कुठार ने ।
कितने बाग उजाड़े ।।
अब भी माना कहा अभिमानी ।
मन क्यों करता है अभिमानी ।
तेरे काम तो है चोरों के ।
पढता है संतों की बानी ।। 1 ।।
वृक्षों से कुछ सिख नसीहत ।
गर है जीवन पाया ।
पत्तों की पत रख निर्धन की ।
साखा से कर छाया ।
फूलों से महक जिन्दगानी ।
है फासले फुल जवानी ।
जड़ से जड़ धर्म की पुख्ता ।
रह जायेगी याद निशानी ।। 2 ।।
समय है कम और वह भी बिखरा ।
मंजिल दूर है तेरी ।
सुखिया की कहीं चकाचौन्ध है ।
दुःख की कहीं अंधेरी ।
इसमें भटक गया अभिमानी ।
अब भी मान कहा अज्ञानी ।
जितनी बची है उसे बचा ले ।
वरना यह भी हाथ न आनी ।। 3 ।।
सौ सालों की उमर भी हो तो ।
आधी खा गई रातें ।
कुछ बचपन कुछ खाये बुढ़ापा ।
बाकी थोड़ी बातें ।।
नत्था सिंह सार न जानी ।
जीवन एक बुलबुला पानी ।
आखिर मिल गई हवा हवा में ।
रह गई खाक जो तूने छानी ।। 4 ।।